ब्रोइलर्स फार्मिंग में पानी का महत्त्व और दैनिक पानी की खपत का चार्ट - Daily Water Consumption in Broilers
ब्रोइलर्स फार्मिंग में पानी का महत्त्व और दैनिक पानी की खपत का चार्ट - Daily Water Consumption in Broilers
प्रिय पाठको
पृथ्वी पर जीवन के तीन आधार हैं हवा पानी और खाना| लोगो को लगता है की हवा और पानी आसानी से मिल जातें हैं परन्तु खाने के लिए अथक प्रयास करने पड़ते हैं और कीमत चुकानी पड़ती है| ऐसा नहीं है निरंतर बढ़ रहे प्रदूषण से हवा और पानी भी दूषित हो चुके हैं और जीवन दाई पानी और हवा सेहत पर बुरा असर डाल रहे हैं| इस चक्र से पोल्ट्री व्यवसाय भी अछुता नहीं है| इन सब पर्यावरण की अनियमिताओं का असर पोल्ट्री और मुख्य रूप से ब्रायलर पर काफी गहरा असर पड़ रहा है| इसकी वजह है ब्रायलर का तेज़ विकास और वज़न बढ़ाने की क्षमता|
आज हम आपको ब्रायलर फार्मिंग में पानी के महत्त्व को समझायेंगे और साथ ही यह भी बताएँगे की किस तरह विभिन्न परिस्थितियों में मुर्गे का निर्जलीकरण होने से शरीर में इलेक्ट्रोलाइटस का संतुलन बिगड़ जाता हैं और खून में तेज़ाबियत बढ़ने लगती है जिससे शरीर में ऑक्सीजन की कमी होने के साथ साथ रोग प्रतिरोधक क्षमता गिर जाती है|
आइये पहले देखें की पानी का प्रबंधन कैसा होना चाहिए
ड्रिंकिंग सिस्टम (पानी के ऑटोमॅटिक उपकरण की प्रणाली)
बैल ड्रिंकर - ओपन ड्रिंकिंग सिस्टम
1. पहले दिन से दसवे दिन तक कम से कम 16 से 20 मिनी चिक ड्रिंकर प्रत्येक 1000 चूज़ो पर लगाने चाहिए|
2. जैसे जैसे ब्रायिलर बड़े होते हैं वैसे वैसे पुराने चिक ड्रिंकर को बैल ड्रिंकर से बदलना पड़ता है, प्रत्येक 70 ब्रायिलर पर 1 बैल ड्रिंकर लगाया जाता है.
3. ये उपकरण उचित दूरी पर लगाने चाहिए, जिससे मुर्गी को पानी पीने के लिए 8 फीट से अधिक ना चलना पड़े.
4. इन ड्रिंकर्स की उँचाई को रोज़ देखना चाहिए, और उँचाई ऐसी होनी चाहिए जिसमे ड्रिंकर की तली मुर्गी की पीठ के बराबर हो. इससे पानी बीट से गंदा नही होगा और स्वच्छता बनी रहेगी.
5. पानी का सही स्तर बनाकर रखना पड़ता है नही तो पानी ड्रिंकर से छलक कर बहार आ जाता है और लिट्टर को गीला करके बीमारी फैलता है.
6. ड्रिंकर्स को रोज़ाना किसी अच्छे सॅनिटाइज़र से साफ करना चाहिए, और टीकाकरण वाले दिन सॅनिटाइज़र को नही इस्तेमाल करना चाहिए.
निप्पल ड्रिंकिंग सिस्टम - क्लोज़्ड ड्रिंकिंग सिस्टम
1. निप्पल ड्रिंकिंग सिस्टम बैल ड्रिंकिंग से अच्छे होते है क्यूनी इसमे पानी का संक्रमण सबसे कम होता है, पानी बर्बाद नही होता, पानी बहार लिट्टर पर नही बिखरता और रोज़ रोज़ पाइप और निप्पल को साफ करने की ज़रूरत नही पड़ती|
2. निप्पल को चूज़ो की उँचाई पर फिट करना पड़ता है और नियमित पानी का दबाव बना कर रखना पड़ता है.
3. इसके लिए ऐसा हिसाब बनाना पड़ता है जिससे चूज़े के पैर ज़मीन पर सीधे रहें और चोंच आसानी से निप्पल के पॉइंट पर पहुँच जाये.
4. निप्पल ड्रिंकर्स में ऐसा प्रेशर सेट करें जिससे बाहर साफ़ तौर पर बूंद दिखाई दे, लेकिन वो टपकने न पाए
5. एक निप्पल 10 से 12 मुर्गियों के लिए काफ़ी रहता है.
6. इस बात का ध्यान रखना चाहिए की सभी निप्पल सही से काम कर रहे हो.
7. निप्पल की पाइप लाइन में संख्या इस बात पर निर्भर करती है की फार्म की चौड़ाई कितनी है और मुर्गियो की संख्या कितनी है.
8. लेकिन आमतौर पर हर 10 फीट पर एक लाइन लगाई जाती है.
पानी स्रोत और भंडारण टेंक
• पानी को अमूमन बोर वेल, खुले कुएँ से या नहर से प्राप्त किया जाता है. नहर या दरया के पानी को पहले अच्छे से साफ करना पड़ता है.
• टैंक का साइज़ का निर्धारण पानी की कुल माँग के हिसाब से किया जाता है. विभिन्न ज़रूरते जैसे पीने के लिए पानी, साफ सफाई के लिए, फॉगर्स के लिए, फार्म के बहार गाडियो के पहिए और पैर को दवाई के पानी में धोने के लिए आदि.
• एक बड़ा टेंक होने के साथ साथ कुछ छोटे टेंक भी होने चाहिए जिनसे हर एक शेड की 24 घंटे के पानी की आपूर्ति की जा सके. यदि दो टेंक रखें जाएँ तो रोज़ाना साफ सफाई में आसानी रहती है.
प्रबंधन और सावधानियां
जैसे ही चूज़े फार्म पर पहुंचे उन्हें तुरंत पहले से तैयार ब्रूडिंग एरिया में छोड़ देना चाहिए यदि इसमें देर की जाएगी तो चूज़ों का निर्जर्लिकरण (डिहाइड्रेशन) होने लगता है| जिससे मोर्टेलिटी बढ़ जाती है और ग्रोथ रेट भी कम होती है| इस समय ट्रांसपोर्ट स्ट्रेस की वजह से इलेक्ट्रोलाइटस की कमी हो जाती है और एनर्जी लेवल भी गिर जाता है| आम तौर पर गुड और नमक का पानी दिया जाता जो चूज़ों को नयी स्फूर्ति प्रदान करता है परन्तु सिर्फ नमक देने से शरीर में सोडियम की मात्रा बढ़ने का खतरा रहता है और यदि बंद जगह में गैस ब्रूडिंग की जा रही हो तो कहानी और भी बिगड़ सकती है क्यूंकि इससे फेफड़ो में ब्लड प्रेशर अधिक हो जाता है और मेटाबोलिक एसीडोसिस होने लगता है जिससे चूज़े की ऑक्सीजन ग्रहण करने के क्षमता पर गहरा असर पड़ता है| साथ साथ फ्री रेडिकल्स बन्ने लगते हैं oxidative stress बढ़ने लगती है|
ऐसे में चूज़ों के लिए पर्याप्त वेंटिलेशन की व्यवस्था होनी चाहिए और कम से कम स्ट्रेस देना चाहिए| और पानी में सिर्फ नमक और गुड न देकर इलेक्ट्रोलाइट के साथ ब्लड बफ़र्स और एंटीओक्सिडेंट्स का भी इस्तेमाल करना चाहिए| यह सब करने से खर्चा अधिक नहीं बढ़ता परन्तु 35 दिन उपरांत FCR पर अच्छा प्रदर्शन देखने को मिलता है|
किसानो को इस बात को ध्यान में रखना चाहिए की सातवे दिन प्रति चूज़े पर 2 ग्राम का फर्क पेंतिसवे दिन पर 12 से 15 ग्राम का फर्क हो जाता है| जो प्रत्येक 1000 चूज़ों पर 12 किलो का फर्क बन जाता है| 12 किलो का मतलब है कम से कम 960 रूपए|
आप सब जानते हैं की ब्रीडर्स के पास से फार्मर्स तक आने में चूज़ों की क्या हालत होती है| क्यूंकि ब्रीडर्स को भी लाखो चूज़ों को सप्लाई करनी होता है इसलिए वो चाहे कितनी भी कोशिश करें स्ट्रेस से बचना असंभव होता है| ऐसी स्थिति में निर्जलीकरण होना अनिवार्य हो जाता है|
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एक बात को समझने की आवश्यकता है वो ये की चूज़े का शरीर 80% पानी होता है, और शरीर में से जब पानी की कमी होती है तो केवल पानी नहीं निकलता बल्कि उसके साथ इलेक्ट्रोलाइट भी निकल जाते हैं इस स्थिति को नेगेटिव डाइटरी इलेक्ट्रोलाइट बैलेंस कहते हैं मतलब शरीर में साल्टस का संतुलन बिगड़ जाता है| सिर्फ 10% डिहाइड्रेशन काफी सीरियस नुकसान कर सकता है| इसका असर रोग प्रतिरोधक क्षमता पर भी पड़ता है जो कम हो जाती है और चूजा विभिन्न रोगजनक जीवाणुओं की चपेट में आ जाता हैं और योक सैक जैसी बीमारियाँ भी होने लगती हैं| यह सिर्फ एक कारक मात्र है यदि उचित प्रबंधन के साथ साथ उपयुक्त पोषण किया जाये तो बहुत अच्छे नतीजे हांसिल किये जा सकते हैं|
तो इसका प्रबंधन कैसे करें
इसके लिए कुछ उत्पाद भी आतें हैं जैसे Electral, ElectroKind, Genlyte, Optiblend, CoolChick आदि इनमे यदि इन्हें इनके कंटेंट के हिसाब से देखा जाये तो Optiblend और CoolChick में इलेक्ट्रोलाइट के साथ साथ एंटीओक्सिडेंट्स भी होते हैं परन्तु ब्लड बफ़र्स सिर्फ CoolChick में देखने को मिलते हैं
खर्चे के हिसाब से देखें तो अलग अलग प्रोडक्ट्स का प्रत्येक चूज़े पर प्रति डोज़ 6 पैसे से लेकर 35 पैसे तक लगता है इसी तरह ROI को देखें तो 30 पैसे से लेकर 1.5 रूपए तक का फर्क देखने को मिल सकता है|
जो भी उत्पाद आप इस्तेमाल करें उसका अधिकतर डोज़ लगभाग 20 ग्राम प्रति 50 किलो लाइव वेट ही होता है|
प्रबंधन के कुछ पॉइंट्स
• जब चूज़े आयें तो तुरंत ब्रूडिंग एरिया में डाल दें
• चूज़ों डालते समय लाइट को बहुत कम कर देना चाहिए
• पानी में इलेक्ट्रोलाइट या उपयुक्त सप्लीमेंट मिलाना चाहिए
• वेंटिलेशन का ख़ास ख्याल रखें खासकर जब गैस ब्रूडिंग या बुखारी का इस्तेमाल हो रहा हो
• यदि आप कहीं दूर दराज़ गाँव में हो और कोई संसाधन न हो तो सोडे और निम्बू का उपयोग कर सकते है|
पानी की गुणवत्ता
• पानी साफ़ और ताज़ा होना चाहिए
• पानी का pH 7 के करीब होना चाहिए यदि pH 8 से ऊपर होती है तो क्लोरीन सेनीटाईज़र कम नहीं करते
• जब acidifier का प्रयोग करें तो कैल्शियम सप्लीमेंट्स न दें
• यदि आपके फार्म में चूज़ों में योक की बीमारी से मरने का क्रम जरी रहे और किसी दवाई से न रुके तो पानी में इकोलाई की जाँच करें
• पानी का TDS 200 से अधिक न होनी चाहिए
ब्रोइलर्स में तापमान और आयु के अनुसार पानी की खपत का चार्ट
दोस्तों आपके लिए Ali Veterinary Wisdom द्वारा ब्रायलर फार्मिंग पर एक महत्वपूर्ण किताब हिंदी में लिखी गयी है जिसमे ब्रायलर फार्मिंग से जुडी हुई सभी छोटी बड़ी जानकारियां हैं| इस किताब में फार्म में चूज़े आने से पहले किये जाने वाले कार्यो से लेकर बेचने तक की सावधानियों तक का विस्तार से आंकलन किया गया है| यह किताब 18 दिसम्बर 2017 को प्रकाशित की जाएगी जो ऑनलाइन मिलेगी यदि आप इस किताब को 50% छूट पर पाना चाहते हैं तो निम्न आइकॉन पर क्लिक कर के एक सर्वे फॉर्म को भर दें |
यह संलेख Dr. Ibne Ali का सर्वाधिकार है जिसे हमने ब्रायिलर फार्मेरो के ज्ञान वर्धन के लिए बनाया गया है. कोई संस्था यदि इसमे दी गयी जानकारी को कहीं उपयोग करे तो Ali’s Veterinary Wisdom के सौजन्य से लिखना ना भूलें. इस संलेख को किसी और नाम से प्रकाशित करने पर सर्वाधिकार हनन माना जाएगा.
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