नवजात बछड़ों की देखभाल
नवजात बछड़ों की उचित देखभाल ही दूध व्यवसाय का भविष्य निर्धारित करती है। नवजात पशुओं में जन्म से लेकर 6 माह तक का समय बहुत ही महत्वपूर्ण होता है क्योंकि दुधारू पशुओं में सर्वाधिक रोग एवं मृत्यु इसी दौरान होती है। तथा इसी सामान्य अंतराल में ही बच्चों को बाहरी वातावरण के अनुकूल बनना पड़ता है। अतः इस समय नवजात पशुओं की देखभाल उचित पोषण स्वास्थ्य प्रबंधन और रोगों से बचाव के प्रति सजग रहना जरूरी हो जाता है।
ध्यान देने योग्य बातें
जन्म के समय नवजात बच्चा बिल्कुल गीला होता है उसके नाक और मुंह पर श्लेष्म क्योंकि एक चिपचिपा पदार्थ होता है वह चिपका रहता है उसे हमें पूरी तरह हटा देना चाहिए। यह किसी साफ कॉटन की तो लिया या किसी कपड़े से किया जा सकता है। इस तरह रगड़ने से उसकी सांस लेने की प्रणाली भी दुरुस्त हो जाती है। यदि उसके नथुनों से शैलेशमा दिखाई दे तो उसकी पिछली टांगे पकड़कर उसे उल्टा लटका देना चाहिए। नाभि को अच्छी तरह बांधने के बाद ही किसी नए या साफ ब्लेड से काटना चाहिए। कटी हुई नाभि पर कोई एंटीसेप्टिक लोशन या क्रीम लगानी चाहिए जैसे सिप्ला डीन या डिटॉल।
नवजात को किस मतलब प्रथम दूध का सेवन एक 2 घंटे के भीतर अवश्य कराना चाहिए। इस प्रथम दूध को कोलेस्ट्रम भी कहते हैं और यह नवजात के लिए बहुत आवश्यक पोषक तत्व इसमें प्रचुर मात्रा में प्रोटीन और एंटीबॉडीज होते हैं जो कि नवजात की रोगों से लड़ने की क्षमता को बढ़ाते हैं। प्रसव के दौरान भैंस की मृत्यु होने या भैंस द्वारा नवजात पशु को दूध ना पिलाने की स्थिति में उसे कृत्म दुधपान कराना चाहिए। शारीरिक भार के 10वे भाग के बराबर प्रतिदिन दूध पिलाना चाहिए। 10 दिनों की आयु पर नवजात पशु को कोई अच्छा डिवरमर देना चाहिए। आमतौर पर दी जाने वाली पिपराजीन नामक दवा अच्छा काम करती है। पुनः एक माह की आयु पर दो चम्मच पिपराजीन और 3 माह की आयु पर 20 से 30 मिलीलीटर तक पिलानी चाहिए। जब बछड़ा 15 दिन का हो जाए तो उसे मुलायम घास की कोपले देनी चाहिए और धीरे-धीरे 1 महीने के बाद सूखा भूसा भी खिलाया जा सकता है। 6 माह का बच्चा 10 से 15 लीटर तक पानी पी जाता है अतः बच्चों को साफ पानी पर्याप्त मात्रा में अवश्य उपलब्ध कराना चाहिए। प्रत्येक बच्चे को 3 माह की उम्र पर पहला तथा 6 माह की उम्र पर दूसरा खुर पका मुंह पका रोग का टीका अवश्य लगाना चाहिए इससे वर्षभर खुर पका मुंह पका रोग से बचाव हो सकता है। अप्रैल माह में गलघोटू और लंगडी बुखार के टीके लगते हैं। संक्रामक गर्भपात से बचने हेतु 6 माह की उम्र में केवल मादा को टीका लगाना चाहिए।
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